Tuesday, October 23, 2018

yoga in hindi

योग क्या है ? योग का इतिहास ? योग के प्रकार ?


        


योग क्या है :- 

                       योग शब्द संस्कृत भाषा के युज शब्द से लिया गया है। संस्कृत भाषा में युज का अर्थ होता है जोड़ना। आध्यात्मिक रूप से योग शरीर ,मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है। प्राचीन ऋषि मुनियो के अनुसार योग एक ऐसी शैली है जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है। विभिन्न ऋषि मुनियो व विद्वानों ने योग की अनेक परिभाषाए दी है। जिनमे से कुछ परिभाषाओ का वर्णन मैं यहाँ पर करता हुँ।


(1)  कुछ ऋषि मुनियो व विद्वानों के अनुसार हमारे चित्त की वृत्तियों में एकाग्रता लाना ही योग है। योग हमारे चित्त की सभी वृतियो को निवृत करने में हमारी मदद करता है।                   
                   
(2)  कुछ ऋषि मुनियो व विद्वानों के अनुसार जीवात्मा का परमात्मा के साथ संयोग ही योग है।

(3)  कुछ ऋषि मुनियो व विद्वानों के अनुसार शरीर ,मन व आत्मा को एक साथ जोड़ना ही योग कहलाता है। 

योग का इतिहास :-



                                 यह माना जाता है कि योग का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास की तरह ही पुराना है। योग की उत्पत्ति आज से हजारो साल पहले हो चूंकि है। योग के इतिहास का आरम्भ प्राचीन भारत में हुआ है। योग विद्या के पहले गुरु शिव को माना जाता है और यह भी कहा जाता है योग की उत्पत्ति शिव के द्वारा की गई है। हजारो साल पहले हिमालय पर्वत पर शिव ने यह विद्या सप्तऋषियों को प्रदान की थी और सप्तऋषियों ने इस विद्या का विश्व भर में प्रचार प्रसार किया और दुनिया के बहुत से देशो तक इस विद्या को पहुंचाया। सप्तऋषियों के बाद अनेक ऋषि मुनियो व योगियों ने लोगो को योग की शिक्षा दी। लेकिन समय के साथ-साथ योग विद्या विभिन्न भागो में विभाजित हो गई।

        आज से लगभग 200 ई पु  महर्षि पतंजलि ने योग की सभी बिखरी हुई शैलियों को जोड़ कर योगसूत्र नामक ग्रन्थ का निर्माण किया। योगसूत्र में महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का वर्णन किया है जिसमे योग के आठ अंग है।
(1 ) यम  (2 ) नियम  (3 ) आसान  (4 ) प्रणायाम (5 ) प्रत्याहार (6 ) धारणा  (7 ) ध्यान (8 ) समाधि।


योग के प्रकार :-

            प्राचीन ऋषि मुनियो व योगियों ने योग को अलग - अलग नजरिए से देखा व लोगो के सामने योग को अनेक प्रकार से प्रस्तुत किया। समय के साथ - साथ योग की विभिन्न शैलिया प्रचलित हो गई। हर एक योग शैली के अपने अलग गुण, अपनी अलग विशेषता व अपने अलग लाभ थे।

योग की कुछ मुख्य शैलिया व प्रकार :-

(1 ) राजयोग:- राजयोग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग का वर्णन है। जिस में महर्षि पतंजलि ने योग के आठ अंगो का वर्णन किया है। यम , नियम , आसान , प्रणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान , समाधि। राजयोग को सभी योगो का राजा कहा जाता है क्योकि इसमें सभी योगो का कुछ न कुछ अंश जरूर मिला हुआ है।

(2 ) कर्मयोग:- निःस्वार्थ भाव से किया गया कार्य ही कर्मयोग कहलाता है। हमे कोई भी कर्म कर्मफल की चिंता किए बगैर करना चाहिए। गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने यही कहा है कि सिर्फ कर्म करो और फल की चिंता छोड़ दो।

(3 ) ज्ञानयोग:- ज्ञानयोग से अभिप्राय वास्तविक सत्य के ज्ञान को प्राप्त करने से है। ज्ञानयोग के माध्यम से हम अपने ऊपर पड़े अज्ञान के बादलों को हटा कर वास्तविक ज्ञान के अमृत को पीते है।

(4 ) लययोग:- चित की सभी वृतियो के निरोध हो जाने के पश्चात चित का परमात्मा में ही लीन रहना लययोग कहलाता है। जब इंसान सोते ,जागते ,खाते ,पीते ,उठते ,बैठते केवल परमात्मा के ध्यान में ही लीन रहे तो उसे ही लययोग कहते है।

(5 ) हठयोग:- हठयोग में ह का अर्थ है सूर्य और ठ का अर्थ है चन्द्र और इन दोनों की समान अवस्था हठयोग है। हमारे शरीर में हजारो नाडिया है उनमे तीन मुख्य है।पहली सूर्यनाडी (पिंगला ), दूसरी चन्द्रनाड़ी (इड़ा ) और तीसरी इन दोनों के बिच में सुषुम्ना। अतः हठयोग वह क्रिया है जिसमे पिंगला व इड़ा नाड़ी के सहारे प्राण को सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कराया जाता है। हठयोग के चार अंग है आसान ,प्रणायाम ,मुद्रा व बन्द।

(6 )मंत्रयोग:- मंत्रयोग का सम्बन्द मन से है जिसमे मन को मंत्र के द्वारा नियंत्रित किया जाता है। मंत्रो का जप  तीन प्रकार से किया जाता है - वाचिक ,मानसिक व उपांशु।

(7 ) भक्तियोग:- परमात्मा की निःस्वार्थ भाव से भक्ति व परमात्मा से अनंत प्रेम ही भक्तियोग है। जब इंसान में भक्ति भाव जागता है तो किसी से घृणा नहीं करता किसी पर क्रोध नहीं करता किसी से कुछ नहीं मांगता केवल परमात्मा से निष्पक्ष निःस्वार्थ भाव से अनंत प्रेम करता है और परमात्मा की भक्ति में लीन रहता है। 

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