आत्मसम्मान की ताकत :-
atmasamman ki taket |
एक स्टेशन पर दो भिखारी राकेश व रमेश भीख मांगते थे। वे दोनो बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों एकसाथ एक ही कालोनी में एक ही कमरे में रहतें थे और एक साथ ही भीख मांगते थे। हर रोज वे भीख मांग कर काफी पैसा इकठा कर लेते थे और उन पैसो से उनका अच्छा गुजारा हो रहा था। लेकिन राकेश को भीख मांगना अच्छा नहीं लगता था। वो जिंदगी मे कुछ करना चाहता था लेकिन उसकी समझ में ये नहीं आ रहा था की क्या किया जाए।
एक दिन एक अध्यापक उस स्टेशन पर खड़ा था। उन दोनो ने अध्यापक से भीख मांगी तो उस अध्यापक ने उन दोनों से पूछा की तुम दोनों भीख क्यों मांगते हो। उन्होने उत्तर दिया कि हम दोनों पैसा कमाने के लिए भीख मांगते है। तो अध्यापक ने कहाँ कि क्या तुम्हे इस तरह पैसा कमाना अच्छा लगता है। राकेश ने कहा नहीं और रमेश न कहा हां। दोनों भिखारियों का उत्तर सुनने के बाद अध्यापक ने राकेश से कहा कि अगर तुम्हे भीख मांगना अच्छा नहीं लगता तो तुम भीख मांगता क्यों हो। राकेश ने कहा की उसे और कुछ करना आता ही नहीं है। यह सुनकर वो अध्यापक वहा से चला गया।
अगले दिन वह अध्यापक फिर स्टेशन पर आया और राकेश से बोला की मुझे बाजार से कुछ सामान लाना है और स्कूल पहुँचाना है क्या तुम मेरे साथ चल कर वो सामान स्कूल पहुंचा सकते हो। राकेश ने कहा ठीक है फिर अध्यापक और राकेश बाजार से सामान ले कर स्कूल पहुंचा देते है। अध्यापक राकेश को कुछ पैसे देता है। राकेश पैसे लेकर बहुत खुश होता है। अध्यापक राकेश से पूछता है कि तुम इतने खुश क्यों हो पैसे तो तुम पहले भी कमाते थे। राकेश ने कहा कि पैसे तो मै कमाता था पैर आज कुछ अलग महसूस हो रहा है। अध्यापक ने कहा यही अंतर है मेहनत का काम करने में इससे इन्सान का आत्मसम्मान बढ़ता है और आत्मसम्मान ही इंसान के आत्मविश्वास को बढ़ाता है। आत्मसम्मान के बढ़ने से इंसान की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। आत्मसम्मान और कुछ नहीं बल्कि हमारी अपने बारे में अपनी सोच है। जो इंसान आत्मसम्मान के लिए कार्य करता है वो कभी भी किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं हो सकता। यह सुनकर राकेश वह से चला जाता है।
कुछ सालो के बाद उस अध्यापक की मुलाकात राकेश से एक पार्टी में हुई। राकेश अब पहले जैसा नहीं था। वह सूटबूट पहने हुआ था। उसने अध्यापक को आकार प्रणाम किया और बोला आपने सही कहा था। अगर इंसान आत्मसम्मान के साथ काम करे तो वह किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकता है। आज म आपकी वजय से भखारी से व्यापारी बन सका हूँ। वही दूसरी और राकेश का दोस्त रमेश आज भी उसी स्टेशन पर भीख मांगता है क्योकि उसमे आत्मसम्मान की कमी थी।
अगले दिन वह अध्यापक फिर स्टेशन पर आया और राकेश से बोला की मुझे बाजार से कुछ सामान लाना है और स्कूल पहुँचाना है क्या तुम मेरे साथ चल कर वो सामान स्कूल पहुंचा सकते हो। राकेश ने कहा ठीक है फिर अध्यापक और राकेश बाजार से सामान ले कर स्कूल पहुंचा देते है। अध्यापक राकेश को कुछ पैसे देता है। राकेश पैसे लेकर बहुत खुश होता है। अध्यापक राकेश से पूछता है कि तुम इतने खुश क्यों हो पैसे तो तुम पहले भी कमाते थे। राकेश ने कहा कि पैसे तो मै कमाता था पैर आज कुछ अलग महसूस हो रहा है। अध्यापक ने कहा यही अंतर है मेहनत का काम करने में इससे इन्सान का आत्मसम्मान बढ़ता है और आत्मसम्मान ही इंसान के आत्मविश्वास को बढ़ाता है। आत्मसम्मान के बढ़ने से इंसान की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। आत्मसम्मान और कुछ नहीं बल्कि हमारी अपने बारे में अपनी सोच है। जो इंसान आत्मसम्मान के लिए कार्य करता है वो कभी भी किसी भी क्षेत्र में असफल नहीं हो सकता। यह सुनकर राकेश वह से चला जाता है।
कुछ सालो के बाद उस अध्यापक की मुलाकात राकेश से एक पार्टी में हुई। राकेश अब पहले जैसा नहीं था। वह सूटबूट पहने हुआ था। उसने अध्यापक को आकार प्रणाम किया और बोला आपने सही कहा था। अगर इंसान आत्मसम्मान के साथ काम करे तो वह किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकता है। आज म आपकी वजय से भखारी से व्यापारी बन सका हूँ। वही दूसरी और राकेश का दोस्त रमेश आज भी उसी स्टेशन पर भीख मांगता है क्योकि उसमे आत्मसम्मान की कमी थी।
कहानी की सिख :-
जीवन में कोई भी कार्य आत्मसम्मान के लिए करना चाहिए क्योकि आत्मसम्मान आत्मविश्वास को जन्म देता है और आत्मविश्वास ही सफलता की चाबी है।
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